बात-चीत

कुछ बातें जो घेरकर बैठ जाती हैं,
उन बातों का कोई अपना पराया नही होता।
वो बस बातें होती हैं जिनका कोई अंत भी नहीं होता है;

सदियों से हम करतें हैं ऐसी बातें
वही वातें बार-बार
उन बातों में बस बहना होता है,
धार में तिनके की तरह बनना होता है

बातें, कभी गर्म तो कभी निर्मम
कभी सरल तो कभी दुर्गम।
एकदिन कुछ ऐसी ही बातों के बाद एहसास हुअा
कि बातों के बाद कुछ पाया नहीं, वो बस खोखली बातें थीं,
मन कुछ मसोस सा होकर रह गया, अौर समय भी गुज़र गया।

वह समय जिसने मुड़कर मुझे कभी नहीं देखा,
मैनें बहुत आवाज़ दी परन्तु वह तो गुज़र चुका था।
सारी बातें समय की तरह ही अर्थहीन थीं,

बातें बस खोखली बातें,
समय के साथ खड़े होकर मुझ पर हसतीं हुई निर्मम बातें।

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