तन
इतने वर्ष बीत गए तन मेरे
क्या तुमको स्वीकार किया!
कितनी बातें मैंने सीखी
कितनें सुख-दुख साथ बिताए
क्या तुमको साकार किया!
मन को समझे वक्त लगा पर,
थोड़ी बात समझ में आई।
तुमको समझना एक भ्रम था,
सोचा इसमें न कोई श्रम था।
पर तन मेरे साथ तुम्हारा
मेरी विडंबना
मैं निभा ना पाई;
मन से तुम्हे अपना ना पाई;
पर तुमने ही साथ निभाया
तन छोड़े मन कहाँ से पाया।
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